Saturday, May 24, 2008

Poem - वो अंजाना सा चेहरा

एक अंजाना सा चेहरा मेरा चैन चुराता है,
हक़ीकत में तो नही, पर ख्वाबों में रोज़ आता है,
पहचानने की कोशिश, बहुत की मैने हर बार उसे,
पर धुंधले अक्स के सिवा, कुछ नज़र नही आता है,
मैने छुना भी चाहा, उसे कई बार आगे बढ़कर,
पर मेरे पास आने से पहले ,ही वो दूर चला जाता है,
ख्वाबों में तो खूब करता है, वो बातें मुझसे,
पर आँखें खुलने पर, गुम हो जाता है,
वो अंजाना सा चेहरा मेरा चैन चुराता है.