Saturday, December 22, 2007

Poem - कुछ अच्छी लगी

Last time, I chatted with Eva, She told me to write some Poems in my blogs.
So I tried this time.


कुछ अच्छी लगी

बाद रेगिस्तान के जैसे नदी अच्छी लगी,
तितलियों के भीड़ में यूँ सादगी अच्छी लगी,
और भी रंगत निखरती जा रही है लीजिए,
आज पहली बार ये नाराज़गी अच्छी लगी.

नींद खोई, भा रही तन्हाइयां - बेचैनिया,
रोज़ बढ़ती जा रही दीवानगी अच्छी लगी,
एक भूली सी किसी की दिल्लगी अच्छी लगी,
इस कहानी का भले हो अंजाम कितना भी बुरा,
कंखियों में मुस्कुराती बानगी अच्छी लगी.

- राज